सतना जिले के जैतवारा थाना परिसर में जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक अपराध नहीं था — वह उस तंत्र की असफलता का जीता-जागता प्रमाण है, जो जनता की रक्षा का दावा करता है। जब अपराधी पुलिस थाने के भीतर घुसकर आरक्षक प्रिंस गर्ग को सीने में गोली मार दें, तब ये सवाल उठना लाज़िमी है कि आख़िर अब सुरक्षित कौन है?
मध्य प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत अब जंगलराज से भी बदतर होती जा रही है। पहले पुलिसकर्मियों की सरेआम पिटाई की घटनाएं सामने आईं और अब स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि पुलिस थाने — जो कि कानून का सबसे मजबूत प्रतीक माना जाता है — वहीं खाकी वर्दी पर गोलियां चलाई जा रही हैं।
ये महज़ एक घटना नहीं है, ये उस पूरे सिस्टम पर तमाचा है जो खुद को “शासन” कहता है। राज्य की सरकार, जो पुलिस बल से निष्ठा की उम्मीद रखती है, वह निष्ठावान पुलिसकर्मियों की सुरक्षा तक सुनिश्चित नहीं कर पा रही। आरक्षक प्रिंस गर्ग पर हुए इस हमले ने साफ कर दिया है कि अब खाकी वर्दी भी अपराधियों की गोलियों से महफूज़ नहीं है।
इस समय जब राज्य की कानून व्यवस्था रसातल में जा चुकी हो, जब पुलिसकर्मी खुद अपराधियों के निशाने पर हों, तब सरकार की भूमिका क्या होनी चाहिए? शायद जवाबदेही तय करना, सुरक्षा देना, और अपराधियों पर कठोर कार्रवाई करना। लेकिन हो क्या रहा है? सरकार सत्ता के प्रतीकों के सामने नतमस्तक है, और गृहमंत्री महोदय किसी खामोश दर्शक की तरह सब कुछ देख रहे हैं।
यह सवाल आज पूरे मध्य प्रदेश से पूछा जाना चाहिए — क्या ऐसे नेतृत्व के हाथों में जनता की सुरक्षा सुरक्षित है? क्या एक गृहमंत्री जो इस कदर असफल साबित हो चुके हैं, उन्हें अब भी कुर्सी पर बने रहने का नैतिक अधिकार है?
मध्य प्रदेश की जनता आज भय, असुरक्षा और निराशा के माहौल में जी रही है। अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं, पुलिस थकी और असहाय है, और सरकार… खामोश है। अगर अब भी कोई सख्त और निर्णायक कार्रवाई नहीं होती, तो यह मान लेना चाहिए कि मप्र अब भगवान भरोसे है।
जैतवारा थाने में जो हुआ, वह चेतावनी है — और अगर इस चेतावनी को भी नजरअंदाज़ किया गया, तो कल किसी और थाने में, किसी और आरक्षक की जान जा सकती है।