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मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी की EOW में शिकायत

भोपाल की राजीव गांधी प्रौद्योगिकी यूनिवर्सिटी में हुए घोटाले के बाद अब जबलपुर की मध्यप्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी (MPMSU) में भी गड़बड़ी का मामला सामने आया है। यूनिवर्सिटी में एक सौ बीस करोड़ रुपए से अधिक की गड़बड़ी की शिकायत आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) से की गई है। एनएसयूआई नेता रवि परमार ने इस मामले की शिकायत कर प्रकरण पंजीबद्ध करने की मांग की है। इसे लेकर एक ज्ञापन भी दिया है।

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एफडीआर का टाइम पर नहीं कराया रिन्युअल, ऑडिट में मिली चूक

ज्ञापन के माध्यम से कहा कि मध्यप्रदेश की एकमात्र मेडिकल विश्वविद्यालय मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय में बीते साल स्थानीय निकाय संपरीक्षा के ऑडिट में विनियोजन राशि (एफडीआर) के रिन्युअल ना कराए जाने का मामला ऑडिट में त्रुटिपूर्ण पाया गया। विश्वविद्यालय के ऑडिट में स्पष्ट कहा गया कि एफडीआर का नवीनीकरण नहीं कराया गया है। ऑडिट में पेश की गई विनियोजन पंजी को किसी भी सक्षम अधिकारी द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया है।

120 करोड़ की गड़बड़ी हुई

शिकायती ज्ञापन में लिखा- एफडीआर की परिपक्कता तिथि (मेच्युरिटी डेट) में नवीनीकरण (रिन्युअल) नहीं कराया गया। जिसके फलस्वरूप अगस्त 2022 में 30 करोड़ 96 लाख 97 हजार 927, सितंबर 2022 में 9 करोड़ 11 हजार इक्कीस, अक्टूबर 2022 में 34 करोड़ 54 लाख 31 हजार 194 रुपए, माह नवंबर 2022 में 26 करोड़ 83 लाख 46 हजार 508 रुपए, माह दिसंबर 2022 में 8 करोड़ 74 लाख 13 हजार 993 एवं जनवरी 2023 में 10 करोड़ 81 लाख 65 हजार 157 रुपए का नुकसान हुआ है।

इस तरह कुल 1 अरब 20 करोड़ 90 लाख 65 हजार 100 रुपए की एफडीआर रिन्युअल ना होने की वजह से करीब सवा करोड़ रुपए का नुकसान होने की आशंका है। 8 स्कंध पंजी, डाक पंजी, मनी पासेज और स्टाम्प ड्यूटी आदि के सत्यापन में भी कई कमियां पाई गई है।

परमार ने कहा कि आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा टेंडरों में भी गड़बड़ियां की जा रहीं हैं। जिससे विश्वविद्यालय को आर्थिक नुकसान हो रहा हैं। हजारों की संख्या नर्सिंग की उत्तर पुस्तिकाओं को गीला कर करोड़ों रुपए का घोटाला किया गया। NSUI ने सभी परीक्षाओं के परिणामों की टेबुलेशन शीट और आंसर शीट की जांच कराने की मांग की है।

रजिस्ट्रार बोले- हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जांच कर रहे हैं

मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार पुष्पराज सिंह बघेल का कहना है कि जिस मामले को लेकर शिकायत की गई है। उसकी जांच विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से कराई जा रही है। इस मामले को भोपाल की RGPV यूनिवर्सिटी के मामले से जोड़ना गलत है। जो भी एफडीआर हैं वो राष्ट्रीकृत बैंकों में हैं। और जो एफडीआर रिन्युअल समय पर ना कराने की बात है तो कई बार अफसरों के ना होने या दूसरे कारणों से कार्रवाई नहीं हो पाई। लेकिन, बैंकों में करंट इंटरेस्ट रेट पर एफडीआर ऑटोरिन्युअल हो जाता है। इस मामले की हाल ही में प्रारंभिक जांच रिपोर्ट राजभवन में भी प्रस्तुत की गई है। घोटाले जैसी बातें निराधार हैं।

https://www.highratecpm.com/npsxwf16?key=565d06ab35720384afe881c0e7364770