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भोपाल से बाघों का तीन सौ साल पुराना नाता, फिल्म में बताएगा मध्य प्रदेश वन विभाग

भोपाल(राज्य ब्यूरो)। बाघ को आज राजधानी की बड़ी समस्याओं में गिना जा रहा है, पर कम ही लोग जानते हैं कि बाघ का भोपाल से तीन सौ साल पुराना नाता है। यह बात कोई और नहीं वन विभाग कह रहा है। शहर के बड़े बाजारों में शुमार न्यू मार्केट और गुलमोहर क्षेत्र कभी बाघों का बसेरा रहा है। यही कारण है कि बाघ राजधानी को नहीं छोड़ रहे हैं। भोपाल देश में ऐसा इकलौता स्थान कहा जा रहा है, जहां बाघ, मानव के इतने नजदीक हैं। फिर भी बीते 12 सालों में कोई दुर्घटना नहीं हुई है। बाघ और मानव के इसी रिश्ते को लेकर हैदराबाद के फिल्म निर्माता सुमन राजू दस्तावेजी फिल्म (डाक्यूमेंट्री) बना रहे हैं। मंगलवार को फिल्म का पोस्टर रिलीज हुआ है और 26 जनवरी को ट्रेलर रिलीज होगा।

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भोपाल शहर से सटे कलियासोत एवं केरवा बांध और आसपास के क्षेत्र में 12 साल (वर्ष 2009) से लगातार बाघ देखे जा रहे हैं। इन्हें कई बार यहां से भगाने और शिफ्ट करने की कोशिश की गई, पर सारे प्रयास नाकाम साबित हुए हैं। आज भी क्षेत्र में बाघ कभी भी दिखाई दे जाते हैं। जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र में आधा दर्जन से ज्यादा बाघ सक्रिय हैं। हैरत इस बात की भी है कि 12 साल से लगभग रोज कहीं न कहीं बाघ दिख जाते हैं, पर अब तक किसी तरह की दुर्घटना नहीं हुई है। इसे बाघ-मानव के बीच बेहतर सामंजस्य के रूप में देखा जा रहा है। इसी से प्रेरित होकर निर्माता सुमन राजू फिल्म बना रहे हैं। 22 मिनट की यह फिल्म विश्व वानिकी दिवस पर 21 मार्च 2022 को रिलीज होगी। फिल्म बनाने में वन विभाग सहयोग कर रहा है।

फिल्म में होगा इतिहास, भूगोल और बाघों से नाता

इस फिल्म में बाघ और भोपाल के इतिहास से परिचित कराने के लिए बहुत कुछ होगा। वन अधिकारियों के अनुसार फिल्म में शहर की भौगोलिक स्थिति, बाघों की मौजूदगी के काल (समय), बाघ इस क्षेत्र में क्यों आते हैं जैसे कई सवालों के जवाब मिलेंगे।

बारहसिंघा, शेर पर बन चुकी हैं फिल्में

विभाग विभिन्न् निर्माताओं के सहयोग से प्रदेश के राज्य पशु बारहसिंघा, बब्बर शेरों के लिए तैयार कूनो नेशनल पार्क सहित पन्ना के बाघ, बांधवगढ़, वन विहार, गांधीसागर अभयारण्य, संजय दुबरी टाइगर रिजर्व और पेंच टाइगर रिजर्व को केंद्र में रखकर विभिन्न् विषयों पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनवा चुका है।

इनका कहना है

बाघ और मानव किस सामंजस्य से रहते हैं। भोपाल इसका उदाहरण है। यह बात लोगों को पता होना चाहिए। भोपाल में बाघों का इतिहास भी पता होना चाहिए। इसलिए फिल्म बनाई जा रही है।

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