सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 अगस्त को दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को हटाने और पाउंड में भेजने के आदेश के विरोध में गुरुवार को शाहपुरा पार्क में बड़ी संख्या में एनिमल लवर्स एकजुट हुए। हाथों में पोस्टर लिए प्रतिभागियों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखी और सामुदायिक श्वानों के लिए मानवीय, वैज्ञानिक व टिकाऊ समाधान की मांग दोहराई।
पीपल्स फॉर एनिमल भोपाल की अध्यक्ष स्वाति गौरव ने कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का विरोध करते हैं। जब तक कोई ठोस रिहैबिलिटेशन प्लान नहीं बनता, तब तक मौजूदा आदेशों को बदलना उचित नहीं है। मौजूदा कानून स्पष्ट कहता है कि डॉग पॉपुलेशन कंट्रोल का तरीका केवल स्टरलाइजेशन और वैक्सीनेशन है, न कि सामूहिक हटाना।
एनिमल वेलफेयर के लिए ‘ड्रैकोनियन लॉ
एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि अयान अली सिद्दीकी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक “ड्रैकोनियन लॉ” जैसा है, जो न तो व्यावहारिक है और न ही मानवीय। उन्होंने हबीबगंज रेलवे कॉलोनी का उदाहरण देते हुए बताया कि पिछले 14 सालों की जागरूकता और प्रयासों से वहां के सभी कुत्ते स्टरलाइज हो चुके हैं, उन्हें नियमित भोजन मिलता है और कुछ कुत्तों को विदेशों में भी अडॉप्ट किया गया है। उन्होंने कहा कि डॉग बाइट की समस्या का समाधान बच्चों और समाज में ह्यूमन-एनिमल सह-अस्तित्व की शिक्षा से ही संभव है।
एनिमल लवर संजय देवस्कर ने बताया कि उन्होंने वर्षों से दो कैंपस डॉग्स की देखभाल की, वैक्सीनेशन और स्टरलाइजेशन कराया, लेकिन सोसाइटी के दबाव और विरोध के कारण उन्हें शेल्टर में भेजना पड़ा। उन्होंने शेल्टर की खराब स्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा कि बीमार कुत्तों के बीच स्वस्थ कुत्तों को रखना क्रूरता है।

“जस्टिस फॉर वोकललेस”
प्रदर्शनकारियों ने ‘एनिमल बर्थ कंट्रोल नियम, 2023’ और ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960’ के तहत कुत्तों की सुरक्षा, नसबंदी और टीकाकरण में सरकार की जिम्मेदारी तय करने, उनके खाने के लिए जगह तय करने और पशु देखभाल करने वालों को उचित मंच देने की मांग की। इस दौरान उन्होंने तख्तियां भी उठाई, जिन पर लिखा था: “मैं भारतीय हूं पर आज़ाद नहीं”, “पशुओं की सुरक्षा ही सच्ची मानवता है”, “जस्टिस फॉर वोकललेस”, “जीवों की रक्षा ही धर्म है” और “उसका वध पाप है।”