हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ का फैसला:पत्नी को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर करना क्रूरता
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक महिला की तलाक याचिका मंजूर करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को नौकरी छोड़ने और अपनी इच्छा के अनुसार रहने के लिए मजबूर करता है तो यह क्रूरता है।
डिवीजन बेंच ने महिला की तलाक की अर्जी को मंजूर कर लिया। 33 वर्षीय महिला केंद्र सरकार के एक उपक्रम में प्रबंधक के रूप में काम करती है। फैमिली कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद उसने हाई कोर्ट का रुख किया था और दावा किया था कि उसका पति उसे नौकरी छोड़ने और भोपाल में उसके साथ रहने के लिए मानसिक रूप से परेशान कर रहा था।
13 नवंबर के आदेश में चीफ जस्टिस वसुरेश कुमार कैत और जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पलट दिया और तलाक के लिए महिला की याचिका को स्वीकार कर लिया। हाई कोर्ट ने कहा कि पति या पत्नी साथ रहना चाहते हैं या नहीं, यह उनकी इच्छा है। न पति और न ही पत्नी दूसरे पक्ष को नौकरी न करने या जीवनसाथी की पसंद के अनुसार नौकरी करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।
वर्तमान मामले में, पति ने अपनी पत्नी को मजबूर किया कि जब तक उसे नौकरी नहीं मिल जाती, तब तक पत्नी को सरकारी नौकरी छोड़नी होगी। इस तरह पत्नी को नौकरी छोड़ने और अपनी इच्छा और शैली के अनुसार रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता है। याचिका में उल्लेख किया गया था कि 2014 में शादी के बाद दंपती ने भोपाल में रहकर सरकारी भर्ती परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी।
पति के अहंकार को ठेस पहुंची वर्ष 2017 में महिला को केंद्र के एक सरकारी उपक्रम में नौकरी मिल गई, लेकिन उसके पति को नौकरी नहीं मिली। इससे उसके अहंकार को ठेस पहुंची। फिर उसने पत्नी को परेशान करना शुरू कर दिया था