MP News: मध्य प्रदेश को तीन साल में 7164 चिकित्सक मिले, लेकिन 2994 छोड़ गए
MP News: शशिकांत तिवारी, भोपाल। मध्य प्रदेश में डाक्टरों की पहले से ही कमी है, लेकिन अब नई चिंता यह है कि डाक्टरों का प्रदेश से पलायन बढ़ गया है। यहां से हर साल 1100 से ज्यादा डाक्टर मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। 2019 में 704 तो 2020 में 1102 और 2021 में 1188 डाक्टर प्रदेश छोड़कर जा चुके हैं। इस साल दो महीने के भीतर ही 110 डाक्टरों ने प्रदेश छोड़ दिया है। इसमें एमबीबीएस, एमडीएमएस और सुपरस्पेशियलिटी तीनों तरह की डिग्री वाले चिकित्सक शामिल हैं। मध्य प्रदेश के सरकारी और निजी मेडिकल कालेजों से फिलहाल हर साल 1600 के करीब एमबीबीएस डिग्रीधारी चिकित्सक निकल रहे हैं, जबकि एमपी मेडिकल काउंसिल में पंजीयन दो हजार से ज्यादा हो रहे हैं।
यानी, दूसरे राज्यों से भी डाक्टर प्रदेश में आ रहे हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि जितने नए डाक्टर पंजीकृत हो रहे हैं लगभग उसके आधे प्रदेश छोड़कर जा भी रहे हैं। मौजूदा स्थिति में प्रदेश 13 सरकारी और 11 निजी मिलाकर कुल 24 मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की 3955 सीटें हैं। मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डा. आरके निगम ने बताया कि अभी 53 हजार चिकित्सक पंजीकृत हैं। हालांकि, इनमें वे नाम भी शामिल हैं जो एनओसी लेकर दूसरे राज्यों में जा चुके हैं। ऐसे में हकीकत में प्रदेश निजी और सरकारी क्षेत्र मिलाकर करीब 25 हजार चिकित्सक ही हैं।
मध्य प्रदेश में सेवा शर्तें ठीक नहीं हैं। निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में अन्य राज्यों के मुकाबले वेतन काफी कम है। डाक्टरों में असुरक्षा की भावना है, इस कारण वह दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। -डा. देवेन्द्र गोस्वामी, अध्यक्ष, मध्य प्रदेश चिकित्सा अधिकारी संघ
इस कारण मध्य प्रदेश से बाहर जा रहे हैं डाक्टर
वेतन : एमबीबीएस डिग्रीधारी चिकित्सक का मप्र के सरकारी अस्पतालों में शुरुआती वेतन करीब 50 हजार मिलता है, जबकि उत्तर प्रदेश, दिल्ली व अन्य राज्यों में 80 हजार है। निजी अस्पतालों में भी एमबीबीएस डिग्रीधारी को करीब 50 हजार रुपये महीने ही दिया जाता है, जबकि दूसरे राज्यों में एक लाख रुपये तक मिलते हैं।
विसंगतियां : चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में काम करने वाले चिकित्सकों का ग्रेड पे और अन्य सेवा शर्तें अलग-अलग हैं।
पदोन्नति : नेत्र विभाग, ईएनटी में 20 साल बाद भी चिकित्सा अधिकारियों की विशेषज्ञ के पद पर पदोन्नति नहीं होती। कुछ विभागों में पांच साल में हो जाती है।
निजी प्रैक्टिस : अन्य राज्यों के मुकाबले निजी प्रैक्टिस पर पाबंदियां हैं। घर में जांच उपकरण रखने की छूट नहीं है।
असुरक्षा : ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में डाक्टरों में असुरक्षा की भावना है। राजनीतिक दबाव: निजी और सरकारी दोनों क्षेत्र में चिकित्सकों को कई बार मध्य प्रदेश में राजनीतिक दबाव में काम करना पड़ता है।
चार साल में विदेश से डिग्री लेकर आए 113
मध्य प्रदेश में विदेश से एमबीबीएस की डिग्री लेकर आए डाक्टर गत चार साल के भीतर 113 रहे। इनमें 24 रूस से पढ़ाई करके आए हैं। मप्र मेडिकल काउंसिल के अधिकारियों ने बताया कि रूस, उक्रेन, चीन में एमबीबीएस में दाखिला डोनेशन से हो जाता है। जो छात्र नीट क्वालिफाई नहीं कर पाते वे यहां जाते हैं।