जल संरक्षण की लिखी इबारत, 40 बावड़ियों का कराया जीर्णोद्धार
छिंदवाड़ा। जिले में पेंच, कन्हान, जाम समेत कुल 11 नदियों का उदगम स्थल है। बड़ी संख्या में यहां पानी की संभावना है, इसके बावजूद बहुत कम लोग ऐसे हैं जिन लोगों ने जल संरक्षण के बारे में सोचा। ऐसे ही एक शख्स हैं तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ गजेंद्र सिंह नागेश, जिन्होंने जल संरक्षण की चिंता की और सालों पुरानी 40 बावड़ियों का जीर्णोद्धार करवाया। आज भले ही वो जिले में पदस्थ नहीं हैं, लेकिन देवगढ़ में लबालब बावड़ियां सफलता की कहानी बयां कर रही है।
जिला मुख्यालय से 46 किमी दूर तहसील मोहखेड़ में एक पहाड़ी पर स्थित देवगढ़ का किला जिले की पहचान माना जाता है। जिसका निर्माण 16वीं सदी में गौड़ शासकों द्वारा किया गया था, इस किले का निर्माण अत्यधिक योजनाबद्ध तरीके से किया गया था। किले की इमारत इस्लामिक शैली से बनी है। जिसमें स्थानीय गौड़ कला का प्रभाव दिखता है। कभी महाराष्ट्र की राजधानी रहा देवगढ़ भारतीय पुरातत्व के नक्शे पर अपनी पहचान बना चुका है। (1657-87 ईसवी) में हुए युद्ध के बाद देवगढ़ से राजधानी को नागपुर स्थानांतरित कर दिया गया। अकबर के समय जाटवा का राज्य छिंदवाड़ा, नागपुर और भंडार जिलों तक ही था। बार बार मुगलों के आक्रमण के कारण राजधानी देवगढ़ नागपुर स्थानांतरित हो गई, आज भी इनके वंशज नागपुर में ही रहते हैं, एवं हर साल दशहरा में देवगढ़ के किले में पूजन करने हेतु आते हैं। किला अब पूरी तरह जर्जर हालत में पहुंच चुका है, अगर पुरातत्व विभाग इस पर पहले ध्यान देता तो हम आज बहुत ही शानदार किला देख पाते एवं गौड़ राजाओं के वैभव को महसूस कर पाते। ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने का कार्य काफी लेट किया गया है वन विभाग द्वारा भी इस किले के जीर्णोद्धार के लिए कार्ययोजना बनाई है। इसके साथ ही वर्तमान में जिला पंचायत द्वारा पुरानी बावड़ियों का जीर्णोद्धार का कार्य शुरु किया गया है।
लोग पहुंचते है खजाने की तलाश में: मोहखेड़ ब्लॉक में किला 650 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। किले के चारों तरफ गहरी खाई है। लोग रात में यहां खजाने की तलाश में पहुंचते हैं। किले के ऊपर बने निर्माण स्थलों और जमीन सहित दीवारों को कई जगहों पर खोदा गया है। रात के अंधेंरे में लोग देवगढ़ पहुंचकर रातभर खजाने की उम्मीद में खुदाई भी करते हैं, जिसकी कई शिकायतें मोहखेड़ थाने में भी दर्ज है। लोगों को उम्मीद है कि आज भी किले के खजाने और मोती टांके में राजा महाराजाओं के समय की संपत्ति है, जिसे हासिल करने के लिए कई बार प्रयास किए जा चुके हैं।
कैसे पहुंचे
देवगढ़ जाने के लिए बस मार्ग से नागपुर उतर कर टैक्सी या बस के जरिए जाया जा सकता है। वहीं भोपाल तरफ से आने वाले यात्री बस या ट्रेन के जरिए आ सकते हैं। पातालकोट एक्सप्रेस और पेंचवेली पैसेंजर के जरिए ट्रेन से पहुंचा जा सकता है। नागपुर तक हवाई यात्रा के जरिए भी देवगढ़ पहुंचा जा सकता है।