संजीवनी बनी सरकारी मदद, पर पाने की डगर मुश्किल
ग्राम पंचायत झाबा के ग्राम बोरकुई के दिव्यांग दंपती के लिए 600 रुपये प्रतिमाह की सरकारी मदद संजीवनी बनी हुई है, लेकिन उसे पाने की खातिर उन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ती है। दिव्यांग दंपती अपने पैरों से चल नहीं पाते हैं। वे अपने घर से हाथों के सहारे धीरे-धीरे तीन घंटे में बैंक तक पहुंचते हैं और सामाजिक सुरक्षा की राशि लेकर घर लौटते हैं। बाग के बाजारों से एक के पीछे एक गुजरते दिव्यांग दंपती को दो-तीन माह में देखा जा सकता है।
हम बात कर रहे हैं दिव्यांग दंपती बहादुरसिंह मसानिया व उनकी पत्नी शिवकुंवर बाई मसानिया की। जिनकी जिंदगी 600 रुपये प्रतिमाह मिलने वाली सरकारी मदद के भरोसे व्यतीत हो रही है। बहादुरसिंह एवं शिवकुंवरबाई मसानिया को सामाजिक सुरक्षा तो मिल रही है, लेकिन बोरकुई से आने-जाने का कोई साधन नहीं है। इससे दिव्यांग दंपती पेंशन लेने गांव से यहां तक आते हैं। रास्तेभर दिव्यांग दंपती हाथ के सहारे ही अपनी मंजिल तय करते हैं। इस बीच रास्ते में पड़ने वाली बाघनी नदी भी पार कर उन्हें निकलना होता है। मुसीबत यह भी है कि परिवार में मदद करने के लिए उन्हें किसी का सहारा नहीं है। उनके बच्चे नहीं हैं। ऐसे में घर में लगने वाला पानी, चूल्हे के लिए लकड़ी या अनाज पिसाने का काम ये लोग किसी व्यक्ति का सहयोग लेकर करते हैं। इस तरह के काम के बदले वे 10-20 रुपये उसे देते हैं। दिव्यांग शिवकुंवरबाई के हाथ ठीक से काम करने की वजह से वे रोटी बना लेती हैं। शुक्रवार को भी दंपती पेंशन राशि निकालने हाथ के सहारे यहां पहुंचे थे।
सूर्योदय से पहले ही घर से निकल गए थे
दिव्यांग शिवकुंवरबाई ने बताया कि बैंक तक आने के लिए उन्हें सूर्योदय से पहले ही घर से निकलना पड़ा और रास्ते में पड़ने वाली बाघनी नदी पार की। हर माह मिलने वाली 600 की राशि के खातिर वे यह मशक्कत कर रहे हैं। वे जानते हैं कि सरकारी पैसा समय पर उनके बैंक खातों में जमा नहीं होता। शुरुआत में खाली हाथ लौटना पड़ा, धक्के खाए। इसलिए दंपती दो-तीन माह में एक ही बार बैंक आते हैं। शिवकुंवर का पति बहादुरसिंह आठवीं तक पढ़ा हैं, लेकिन निर्धनता की वजह से उसके पास मोबाइल नहीं है। ऐसे में अपने खाते में राशि आने की जानकारी नहीं मिल पाती है।
तीन माह से नहीं मिला राशन
सरकारी राशन प्राप्त करने के लिए भी ग्राम झाबा तक जाने की मशक्कत करनी पड़ती है, लेकिन बीते तीन माह से वह भी नहीं मिल रहा है। आय के अन्य साधन में थोड़ी कृषि भूमि है, लेकिन दंपती खेती करने के लिए सक्षम नहीं हैं। काम करने में असमर्थ है। इस वजह से वे अपने हिस्से की खेती साझे से दे देते हैं। पारिवारिक बंटवारे में जो कृषि भूमि हिस्से में आई थी, वह भी दिव्यांगों के नाम से नहीं होने से पावती पर नाम दर्ज नहीं हुआ। पावती पर पिता का नाम ही दर्ज है। पावती पर नाम दर्ज नहीं होने से किसान सम्मान निधि से भी ये वंचित हैं।
बैंक तो आना पड़ेगा
इनके खाते में राशि आई है, तो बैंक आना ही पड़ेगा। अगर जनपद पंचायत चाहे तो इनका पैसा बैंक में नहीं डालते हुए सीधे इनके हाथों में दिया जाएगा। बैंक घर तक राशि का वितरण नहीं कर सकती। -बीएस राणा, प्रबंधक, जिला सहकारी बैंक बाग