भोपाल के गोविंदपुरा एसडीएम रवीशकुमार श्रीवास्तव ने बच्ची की कस्टडी से जुड़े एक प्रकरण में फैसला सुनाया। इसमें 3 साल की बच्ची की कस्टडी मां को सौंपी गई। पति का दावा था कि पत्नी को गंभीर बीमारी है। ऐसे में बच्ची सुरक्षित नहीं रहेगी। जब महिला की जांच कराई तो वह स्वस्थ निकली।
महिला ने आवेदन दिया था कि उसका विवाह 11 दिसंबर 2019 को हुआ। साल 2021 में मुझे हेपेटाइटस बी नामक बीमारी होने के बारे में पता चला। 24 जून 2025 तक मैं ससुराल में पति के घर में ही रही, लेकिन 25 जून 2025 को पति और सास ने मुझे व बेटी को घर से निकाल दिया था। जिसकी रिपोर्ट अगस्त में थाने में की गई। जब मैं थाने में रिपोर्ट लिखवाने गई, तभी पति बेटी को जबर्दस्ती अपने साथ ले गया। महिला ने एसडीएम श्रीवास्तव से बच्ची की कस्टडी वापस दिलाए जाने की मांग की।
इधर, पति ने कहा कि विवाह के बाद पत्नी गर्भवती हुई तो उसकी जांच कराई गई। जिसमें वह हैपेटाइटिस बी पॉजीटिव पाई गई। यह गंभीर बीमारी है, जो मां से बच्चे को हो जाती है। मैंने जन्म के समय बच्ची को हेपेटाइटिस बी का टीका लगवा दिया था, लेकिन हर छह महीने में उसका उपचार होता है।
पत्नी की वजह से मुझे भी संक्रमण हो चुका है। इसलिए पत्नी और मेरा आपसी सहमति से तलाक लेने का निर्णय हुआ था और बच्ची की देख-रेख दोनों साथ में करेंगे। जब मैं बच्ची को लेकर ससुराल गया तो पत्नी के परिजनों ने मारपीट की और थाने में केस दर्ज करवा दिया। पत्नी ने मां के विरुद्ध भी झूठा केस दर्ज कराया।
जेपी हॉस्पिटल में कराया स्वास्थ्य परीक्षण दोनों पक्षों को सुनने के बाद एसडीएम श्रीवास्तव ने जेपी हॉस्पिटल में महिला का स्वास्थ्य परीक्षण कराया। जांच में सामने आया कि वर्तमान में महिला को इलाज की जरूरत नहीं है। बच्ची का भी टीकाकरण हो चुका है। बच्ची को सफल टीकाकरण एवं मां की सभी जांच के बाद पर एहतियात के साथ रहने में कोई खतरा नहीं है।
जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी पत्र अनुसार मां से बच्ची को किसी भी तरह के संक्रमण होने खतरा नहीं है। चूंकि बच्ची की उम्र 3 साल है और वह अबोध है। अबोध होने के कारण उसे मां की सर्वाधिक आवश्यकता है। वह उसका पालन पोषण ज्यादा अच्छे से कर सकती है। इसलिए बच्ची की कस्टडी मां को दे दी गई।