30 करोड से बना काटजू अस्पताल पड़ा खाली
राजधानी के बीचोंबीच बने कैलाश नाथ काटजू अस्पताल की चार मंजिला इमारत शोपीस बनकर रह गई है। 30 करोड की लागत से इस अस्पताल का पुर्ननिर्माण बतौर प्रसूति एवं शिशु चिकित्सालय के तौर पर कराया गया था। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब मरीज बढ़ने लगे तो बीते साल मई के महीने में इसे दो सौ बिस्तरों का डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल के तौर पर शुरू कर दिया था। इस अस्पताल के संचालन में गैर सरकारी संस्था केयर इंडिया ने सहयोग किया। लेकिन कोरोना की तीसरी लहर कमजोर पड़ने के बाद से अफसर इसे एमसीएच हॉस्पिटल बनाने की कागजी तैयारियों में जुटे हैं। 31 मार्च को केयर संस्था का कार्यकाल पूरा होने पर डॉक्टर और स्टाफ हॉस्पिटल भोपाल से विदा हो गया। ऐसे में काटजू अस्पताल खाली पड़ा है। यहां न कोरोना मरीज भर्ती हो रहे हैं हालात ऐसे हैं कि अब दूसरी बीमारियों के मरीजों को भी इलाज नहीं मिल पा रहा है। अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त यह पांच मंजिला इमारत शोपीस बनकर रह गई है।एसएनसीयू तैयार नहींअफसरों की मानें तो काटजू अस्पताल को मेटरनल एंड चाइल्ड हेल्थ (MCH) हॉस्पिटल बनाने की तैयारी पिछले तीन महीनों से चल रही है। आनन-फानन में कोरोना मरीजों के लिए अस्पताल चालू करने की वजह से यहां बच्चों के लिए एसएनसीयू तैयार नहीं हो पाया है। एसएनसीयू की पूरी तरह तैयार होने के बाद फायर और इलेक्ट्रिक एनओसी मिलने के बाद ही यहां बच्चों को भर्ती किया जाएगा।नॉर्मल डिलेवरी शुरू हों तो सुल्तानिया, जेपी का लोड घटेसुल्तानिया, जेपी अस्पताल में डिलेवरी का लोड बना रहता है। 235 बिस्तरों वाले सुल्तानिया अस्पताल में अधिकांशत: ढाई सौ से ज्यादा गर्भवती महिलाएं और प्रसूताएं भर्ती रहतीं हैं। यदि ऐसे में काटजू अस्पताल में डिलेवरी होने लगें तो बडे़ अस्पतालों का लोड कुछ कम हो सकता है। अफसर भी मानते हैँ कि गायनेकोलॉजिस्ट और नर्सिंग स्टाफ के साथ जांचों की सुविधा शुरू हो जाए तो यहां नॉर्मल डिलेवरी शुरू की जा सकतीं हैं।