जबलपुर हाई कोर्ट ने सिविल न्यायालय के निर्णय को छिपाकर पारित कराया गया आदेश निरस्त किया
हाई कोर्ट ने सिविल न्यायालय के निर्णय को छिपाकर पारित कराया गया आदेश निरस्त कर दिया। मामला उमा महेश्वर संस्कृत पाठशाला ट्रस्ट की 72 एकड़ जमीन से संबंधित था। इसी के साथ पूर्व में लगी रोक हट गई। साथ ही रेवेन्यू बोर्ड आगे की कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हो गया।
हाई कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने नरसिंहपुर अंतर्गत पिपरिया बनियाखेड़ा के इस मामले में सिविल कोर्ट के आदेश को छिपाया था। इस मामले में अनावेदकों की ओर से अधिवक्ता अभिजीत अवस्थी, ब्रायन डिसिल्वा, अनिल खरे व तन्वी खरे ने पक्ष रखा। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने बोर्ड आफ रेवेन्यू के अधिकारियों को नामांतरण की कार्रवाई करने की अनुमति भी दे दी। हाई कोर्ट ने 23 सितंबर, 2021 को जमीन को बंटवारानामा के आधार पर निजी नाम पर चढ़ाए जाने के बोर्ड आफ रेवेन्यू के आदेश पर रोक लगा दी थी।
नरसिंहपुर निवासी रामकिशन पटेल की ओर से याचिका दायर कर बताया गया कि उसके पूर्वज चौधरी भैयालाल द्वारा 1947 में तमलीकनामा के माध्यम से 72 एकड़ जमीन उमा महेश्वर संस्कृत पाठशाला व देव शंकर जी मन्दिर को दान में दी गई। दानपत्र में यह प्रविधान रखा गया था कि मंदिर की भूमि किसी भी प्रकार से हस्तांतरित नहीं की जाएगी। इस जमीन से प्राप्त आय का उपयोग संस्कृत की शिक्षा एवं मंदिर के आयोजनों में किया जाएगा। हाई कोर्ट को बताया गया कि मंदिर के सर्वराहकार व उनके पुत्रों द्वारा बंटवारामाना तैयार कर नायब तहसीलदार कोर्ट से जमीन अपने नाम दर्ज करवा ली गई थी। पूर्व में इस जमीन पर प्रबंधक के रूप में कलेक्टर जबलपुर का नाम दर्ज था। कलेक्टर जबलपुर द्वारा तहसीलदार के आदेश का पुनर्विलोकन कर आदेश को निरस्त कर दिया गया। कमिश्नर और बोर्ड आफ रेवेन्यू ने भी कलेक्टर के आदेश को बहाल रखा। इसके बाद बोर्ड आफ रेवेन्यू ने पुनरावलोकन आवेदन पर विचार करने के बाद जमीन को अनावेदकों के नाम पर चढ़ाने का आदेश दे दिया। अनावेदक ओमप्रकाश मिश्रा की ओर से इसका विरोध किया गया। समर्थन में दस्तावेज पेश किए गए। सुनवाई के बाद कोर्ट ने पाया कि निचली अदालत ने 1971 में ही ओमप्रकाश मिश्रा के पिता स्व. विश्वनाथ मिश्रा को उक्त सम्पत्ति का स्वामी घोषित किया था। इस तथ्य को न्यायालय से छिपाकर स्थगन लिया गया।