नरवाई व जंगल की आग से हर वर्ष होता है लाखों का नुकसान
गर्मी के मौसम में हर वर्ष गेहूं की नरवाई व जंगल में आग लगने के मामले सामने आते हैं। इससे लाखों की आर्थिक क्षति के अलावा बेशकीमती पर्यावरण को नुकसान होता है। शासन-प्रशासन के अनेक प्रयासों व समझाइश के बाद भी किसान गेहूं की फसल काटने के बाद नरवाई में आग लगा देते हैं। इसी तरह जंगल में महुआ बीनने के लिए पहुंचे लोग पत्तों को एकत्र करके आग लगा देते हैं। ताकि उन्हें पेड़ के नीचे महुआ के फूल आसानी से प्राप्त हो सकें। जिले में पिछले वर्ष नरवाई में आग लगाने के सौ से अधिक मामले सामने आए थे। जबकि औबेदुल्लागंज के रातापानी अभयारण्य सहित बाड़ी, बरेली, उदयपुरा, सिलवानी, बेगमगंज, सुल्तानगंज, गैरतगंज, सांची सलामतपुर, दीवानगंज व रायसेन वन परिक्षेत्र में पचास से अधिक स्थानों पर आग लगी थी। रातापानी अभयारण्य में पिछले वर्ष लगातार चार दिनों तक आग लगने से लाखों पेड़-पौधे जल गए थे।
ग्रामीण क्षेत्रों में आग बुझाने के साधनों का अभाव
गर्मी के मौसम में जब भी खेतों की नरवाई व जंगल में आग लगने की घटना होती है तो आग को बुझाने के लिए संसाधनों का अभाव नजर आता है। जिले की 515 ग्राम पंचायतों व 1495 ग्रामों में आग बुझाने के संसाधनों का अभाव है। नगरपालिकाओं व नगर परिषदों में तो दमकल उपलब्ध होते हैं, लेकिन ग्राम पंचायतों में दमकल नहीं हैं। पानी के टैंकरों की मदद से आग पर काबू पाने का प्रयास किया जाता है जो कि नाकाफी साबित होते हैं। करीब दो सौ पंचायतों में तो पानी के टैंकर भी उपलब्ध नहीं हैं।
प्रशासन ने नरवाई जलाने पर लगाया है प्रतिबंध
जिला प्रशासन व पुलिस की ओर से नरवाई जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। नरवाई जलाने के मामले को लेकर यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराई जाए तो उसे जेल की सजा हो सकती है। जिले में इस साल रबी फसलों की बोवनी साढ़े चार लाख हेक्टेयर में हुई है। जिसमें से तीन लाख हेक्टेयर में गेहूं व शेष में चना, तुअर, अलसी, सरसो इत्यादि फसलें हैं। बहुत कम किसान ही गेहूं की फसल काटाने के बाद खेत की मिट्टी को ट्रैक्टर से पलटा कर नरवाई को दबा देते हैं। जबकि अधिकांश किसान हार्वेस्टर से फसल काटने के बाद नरवाई को आग के हवाले कर देते हैं। नरवाई जलाने के बाद अगली फसल बोवनी के लिए खेतों को तैयार किया जाता है।
भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट होती है
नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है। कृषि विज्ञानी डॉ. स्वप्निल दुबे ने बताया कि नरवाई को जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। जिससे मिट्टी में उर्वरा शक्ति कमजोर हो जाती है। इसलिए नरवाई को जलाने के बजाय खेत में ही दबा दिया जाना चाहिए। फसल काटने के बाद ट्रैक्टर पलाऊ से मिट्टी को पलटा देना चाहिए और उस पर हल्की सिंचाई कर दें। पंद्रह दिनों में मिट्टी में दबी हुई नरवाई सड़कर खाद बन जाएगी। इससे फसलों की पैदावार भी अच्छी होगी।
भूसा की कमी हो जाती है
किसान गेहूं की फसल काटने के बाद नरवाई को जला देते है इस कारण भूसा की कमी हो जाती है। यही कारण है कि वर्तमान में भूसा के दाम पंद्रह रुपये किलो हैं। यदि नरवाई से भूसा बनाने का काम किया जाए तो किसानों को अतिरिक्त आमदनी होने के साथ ही मवेशियों को भूसा की उपलब्धता हो जाएगी।
नरवाई जलाने पर शासन की ओर से पूर्णतः प्रतिबंध लगा हुआ है। नरवाई जलाने से पर्यावरण व खेतों की मिट्टी को नुकसान पहुंचता है। इसलिए किसानों को नरवाई नहीं जलाने की चेतावनी दी गई है।
– अरविंद कुमार दुबे, कलेक्टर।
गर्मी के मौसम में वन परिक्षेत्र में आग लगने के मामलों को गंभीरता से लिया जाता है। सूचना मिलने पर फायर ब्रिगेड आग पर नियंत्रण के लिए पहुंचाई जाती है। जंगल में कैमरों की मदद आग की घटनाओं पर नजर रखी जा रही है।