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महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को आज के दिन हुई थी फांसी

15 नवंबर 1949 की सुबह का समय था, जब अंबाला सेंट्रल जेल परिसर में एक अत्यंत गंभीर और संवेदनशील घटना घटित होने जा रही थी। जेल के कर्मी नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को उनके सेल से निकाला गया। जैसे ही उन्हें फांसी के तख्त की ओर ले जाया गया, गोडसे ने कांपती हुई आवाज में ‘अखंड भारत’ का नारा दिया, जो उनके विचारों और आदर्शों का प्रतीक था। वहीं, आप्टे ने थोड़ी मजबूत आवाज में ‘अमर रहे’ कहकर इस नारे को पूरा किया, जो उनकी दृढ़ता और साहस को दर्शाता है। इसके बाद, दोनों ने खामोशी ओढ़ ली, मानो वे अपने विचारों और कार्यों के परिणाम को स्वीकार कर रहे हों।

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जेल परिसर में दो फांसी के तख्त बनाए गए थे, जिन पर गोडसे और आप्टे को एक साथ फांसी दी गई। आप्टे की मौत तुरंत हो गई, जबकि गोडसे थोड़ी देर तक तड़पते रहे, उनके चेहरे पर एक अद्भुत मिश्रण था – एक ओर आत्म-विश्वास और दूसरी ओर भय का भाव। दोनों की मौत के तुरंत बाद, जेल परिसर में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। प्रशासन ने इस संवेदनशील मामले को गुप्त रखने के लिए बड़ी सावधानी बरती और उनकी अस्थियों को घग्घर नदी में बहा दिया, ताकि किसी भी प्रकार की हलचल से बचा जा सके।


इस घटना को आज ठीक 75 साल पूरे हो चुके हैं। महात्मा गांधी की हत्या के मामले में कुल 9 आरोपियों की पहचान की गई थी। इन आरोपियों पर 8 महीने तक लाल किले में विशेष ट्रायल कोर्ट में सुनवाई चली। अंततः, इस मामले में दोषी पाए जाने के बाद, गोडसे और आप्टे को फांसी की सजा दी गई। इस प्रक्रिया में केवल एक व्यक्ति, जिसका नाम विनायक दामोदर सावरकर था, को दोषमुक्त किया गया। यह घटना न केवल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, बल्कि यह उस समय की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का भी एक गहन अध्ययन प्रस्तुत करती है।

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