दो दिन पहले जारी हुई सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की रिपोर्ट में शिशु और मातृ मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश सबसे खराब राज्यों में फिर नजर आया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने एसआरएस की रिपोर्ट को लेकर मप्र सरकार और स्वास्थ्य विभाग के कामकाज पर सवाल उठाए हैं। पटवारी ने सीएम डॉ. मोहन यादव को लेटर लिखा है।
हर 1000 में 40 बच्चे नहीं मना पाते पहला जन्मदिन
पटवारी ने अपने पत्र में लिखा- सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) की ताजा रिपोर्ट ने यह खुलासा किया है कि हमारे प्रदेश में हर 1000 में से 40 बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते।
भोपाल से दिल्ली तक सिर्फ बयानबाजी
पटवारी ने आगे लिखा- आपकी सरकार जिस “कागजी विकास” की गंगा बहा रही है, वह कितनी गहरी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हम हर महीने कर्ज लेकर इस “विकास-रथ” को आगे बढ़ा रहे हैं। इसी में ₹4500 करोड़ का सालाना स्वास्थ्य बजट भी है, लेकिन यह पैसा जाता कहां है?
क्या यह कुपोषण के ऐसे “घोटालों” में समा जाता है, जिनकी रिपोर्ट CAG हर साल देता है? कर्ज, करप्शन और कमीशन का “ट्रिपल-इंजन” आर्थिक अराजकता की पटरियों पर “बुलेट ट्रेन” से तेज दौड़ रहा है, लेकिन भोपाल से लेकर दिल्ली तक सिर्फ बयानबाजी है।
सिर्फ 120 अस्पतालों में ही डिलीवरी की सुविधा क्यों? पटवारी ने लिखा- मुख्यमंत्री जी, इन “अविश्वसनीय” आंकड़ों पर भी गौर फरमाइए। 2022 में जब प्रदेश में कुल 547 स्वास्थ्य केंद्र (52 जिला, 161 सिविल और 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) थे, तो केवल 120 अस्पतालों में ही सिजेरियन डिलीवरी की सुविधा क्यों थी? क्या बाकी अस्पताल सिर्फ नाम के लिए खड़े हैं, या फिर वे सिर्फ “रेफरल” सेंटर बनकर रह गए हैं?
CHCs में 70% शिशु रोग विशेषज्ञों के पद खाली
पीसीसी चीफ ने लिखा- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 70% से अधिक शिशु रोग विशेषज्ञों के पद खाली हैं। यानी बच्चे बीमार पड़ें तो परिजन डॉक्टर ढूंढते फिरें। सरकारी आंखें खोलने के लिए कभी पुरानी रिपोर्ट भी पढ़ें, तो आपको पता चलेगा कि एसएनसीयू में होने वाली 55% मौतें रेफरल के कारण ही होती हैं। ऐसा लगता है, हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था का मूलमंत्र ही “बीमार पड़ो, रेफर हो जाओ और फिर भगवान भरोसे रह जाओ” बन गया है।
स्वास्थ्य सेवाएं क्यों नहीं हो पा रहीं ठीक? पटवारी ने कहा- लगभग ₹4.5 लाख करोड़ के कर्ज में डूबा हमारा प्रदेश, इतने भारी भरकम कर्ज के बाद भी अपनी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को ठीक क्यों नहीं कर पा रहा है? इसीलिए, बार-बार कहना पड़ता है कि यह “पर्ची” बहुत महंगी है? इसीलिए, बार-बार पूछना पड़ता है कि “स्वस्थ मध्य प्रदेश” आपकी सरकार की प्राथमिकता में है भी, या फिर सिर्फ भाषणों/विज्ञापनों में ही “स्वास्थ्य का सपना” बेचा जाएगा?