E paper

संतो की प्रेमिल वाणी पर कभी काल का दाग नहीं पड़ सकता

वेलेन्टाईन दिवस / विशेष

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

जायसी जी ~ मानुष प्रेम भयऊ बैकुंठी, नाहिं तो काह, राख इक मुंठी ।।

जायसी प्रेम के निश्चल साधक, प्रेम के धारक, मनुष्य मात्र के सच्चे आराधक हैं। कितनी सरल सहज सपाट भाषा में वे कहते है यदि मनुष्य होकर हम प्रेम नही कर सके या सामने वाले का प्रेम नही पा सके तो दुनिया में हमारा आना निरर्थक ही रहा। प्रेम की उपस्थिति में मानव देह साक्षात बैकुंठ है। अन्यथा एक मुट्ठी भर निर्जीव राख के अलावा कुछ भी नही।आज की उपभोक्ता संस्कृति के बाजारवादी रुख ने प्रेम जैसे मूलाधार को वार्षिक रिन्यूवल ब्रांडिंग पैकेजिंग तथा एडवरटाईजिंग की चपेट में इतना जकड़ लिया है कि कम्पनियों के विशेषज्ञों के आकलन के अनुसार गिफ्ट और होटल, हाट बाजार दुनिया भर में वेलेंटाइन-डे के समय 20 अरब डालर से भी ज्यादा उछाल पर पहुंच गया है। हालांकि 605 साल पहले संत कबीर आगाह कर चुके थे – “प्रेम न बाडी उपजै, प्रेम न हाट विकाय” – अर्थात प्रेम को न तो बगीचे में उगाया जा सकता है और नही हाट बाजार में बेचा खरीदा जा सकता है। इस प्रेम को पाने का एक ही विकल्प है कि सच्चे और अहंकार – शून्य होकर बड़े मजे से प्रेमास्पद के हृदय में डेरा डाल दीजिए, किराया चुकाने का सवाल ही कभी नही उठ सकता।समसामयिक युग में भी यह मान्यता कालातीत (आउट डेटेड) नही पड़ सकती कि यदि एक युवक ने अपने माता-पिता से, पड़ोसियों, साथियों, दोस्तों से प्यार न किया हो तो वह उस औरत को कभी प्यार नही करेगा। जिसे उसने अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा है। और उसके गैर सेक्सी प्यार का दायरा जितना व्यापक होगा, उसका सेक्सी प्यार भी उतना श्रेष्ठ होगा। एक आदमी जो अपने देश अपने लोगों और काम से प्यार करता है। वह कभी भी लंपट दुराचारी नहीं बनेगा। और वह एक नारी को महज एक मादा के रूप में देखने का अपराध भी नहीं करेगा।

सारत: हम आप क्या करें ? इसका उत्तर है अभी और इसी क्षण बिना शर्त एक दूसरे से प्रेम करें।

https://www.highratecpm.com/npsxwf16?key=565d06ab35720384afe881c0e7364770