अपर मुख्य सचिव नगरीय विकास एवं आवास संजय शुक्ला ने कहा कि भारत में पहली बार री-यूज वाटर पोर्टल पर काम किया जा रहा है, जो प्रदेश में जल संरक्षण और पुन: उपयोग की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या के समाधान के लिए ज्ञान, संसाधन और इच्छा-शक्ति तीनों का होना आवश्यक है।
यह बात शुक्रवार को इंदौर में दो दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला और जल संवाद कार्यक्रम में कही। अपर मुख्य सचिव शुक्ला ने आगे कहा कि नगरीय सेवाओं में कार्य करना एक चुनौती है। जिसमें समर्पण के साथ तकनीकी और प्रशासनिक दक्षता की आवश्यकता होती है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि इंदौर की कार्यशाला में प्राप्त निष्कर्षों का क्रियान्वयन इंदौर के साथ-साथ प्रदेश के अन्य नगरीय क्षेत्रों में श्रेष्ठ नवाचार के रूप में पहचाना जाएगा।
‘री-यूज, रीड्यूज, री-साइकल रणनीति अपनाई जा रही’
आयुक्त नगरीय विकास एवं प्रशासन संकेत भोंडवे ने कहा कि जल प्रबंधन के लिए 3 सिद्धांत री-यूज, रीड्यूज और री-साइकल पर आधारित रणनीति अपनाई जा रही है। जिस तरह इंदौर ने स्वच्छता के क्षेत्र में अपना नाम देशभर में स्वच्छता के श्रेष्ठ मॉडल के रूप में स्थापित किया है, उसी तरह इस कार्यशाला के विचार-विमर्श के बाद नवाचार के माध्यम से इंदौर उपयोगी जल प्रबंधन पर अन्य शहरों के लिए अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत करेगा। उन्होंने प्रदेश में नगरीय क्षेत्रों में जल गंगा संवर्धन अभियान में किए गए कार्यों की जानकारी दी।
तकनीकी सत्र में सीएसआईएस के डॉ. राजेश बीनीवाले, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के डॉ. शैलेश खरकवाल, आईआईटी रुड़की के प्रो. संजेश प्रजापति, प्रो. राजेश गुप्ता और सीएसई की सुश्री चक्रवर्ती ने उपयोगी जल के उचित प्रबंधन के संबंध में विचार व्यक्त किए। कार्यशाला में घरेलू अपशिष्ट जल से जुड़ी अर्थव्यवस्था, जल शोधन की कम लागत वाली तकनीक, पुन: उपयोग जल के मानक, राज्य की जल नीति, नाला टेपिंग, एसटीपी और पीपीपी मॉडल पर चर्चा हुई।